राष्ट्रीय

वन अधिनियम में संशोधन की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर न्यायालय का केंद्र को नोटिस

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को वन (संरक्षण) अधिनियम में हालिया संशोधन की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा। बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने याचिका पर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और कानून एवं न्याय मंत्रालय को नोटिस जारी किया। शीर्ष न्यायालय सेवानिवृत्त नौकरशाह अशोक कुमार शर्मा और अन्य की एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है। याचिका के जरिये वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 की संवैधानिकता को यह कहते हुए चुनौती दी गई है कि नया कानून देश के पुराने वन शासन ढांचे की अनदेखी करता है। याचिका में कहा गया है, ‘‘2023 का संशोधन अधिनियम मनमाने तरीके से वन भूमि में कई तरह की परियोजनाओं और गतिविधियों की अनुमति देता है और ऐसा करते हुए यह वन संरक्षण अधनियम के दायरे से उन्हें छूट देता है।’’ इसमें कहा गया है, ‘‘ये परियोजनाएं और गतिविधियां नये कानून में अस्पष्ट रूप से परिभाषित की गई हैं, और इनकी व्याख्या व्यापक जनहित की कीमत पर वाणिज्यिक हितों को पूरा करने वाले तरीके के रूप में की जाएगी।’’ वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023, को लोकसभा ने 26 जुलाई को और राज्यसभा ने अगस्त में पारित किया था। इसके जरिये देश की सीमाओं के 100 किमी के भीतर की जमीन को संरक्षण कानूनों के दायरे से छूट देने का प्रावधान किया गया है तथा वन क्षेत्रों में प्राणिउद्यान, सफारी (जंगल की यात्रा) एवं पारिस्थितिकी पर्यटन की सुविधाओं की अनुमति दी गई है। याचिका के अनुसार, प्राणि उद्यान जंतुओं को कैद रखते हैं और सफारी उद्यान महज बड़े बाड़े हैं। इसमें कहा गया है कि किसी भी तरह से इसे वन्यजीव या वन्य गतिविधियों के संरक्षण के उपायों के समान नहीं बताया जा सकता।

 

 

 

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