जब संविधान धर्मनिरपेक्ष है तो धर्म के आधार पर आरक्षण कैसे दिया जा रहा है?
कर्नाटक विधानसभा चुनावों में मुस्लिमों के 82 प्रतिशत से ज्यादा मत अकेले कांग्रेस को मिले थे इसलिए ऐसा लगता है कि कांग्रेस पार्टी की सरकार तुष्टिकरण की राजनीति की पराकाष्ठा पर उतर आयी है। पहले कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने पूर्व की भाजपा सरकार के उस फैसले का विरोध किया जिसके तहत मुस्लिमों के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण को खत्म कर दिया गया था। उसके बाद राज्य सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर जारी प्रतिबंध को हटा दिया। अब कांग्रेस सरकार ने सरकारी ठेकों में मुसलमानों को चार प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय लिया है। चूंकि आरक्षण धर्म के आधार पर दिया जा रहा है इसलिए सवाल उठता है कि जब भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष है तो कोई सरकार धर्म के आधार पर आरक्षण कैसे दे सकती है? सवाल यह भी है कि यदि कांग्रेस को तुष्टिकरण की राजनीति ही करनी है तो वह हिंदूवादी होने का ढोंग क्यों करती है? हम आपको बता दें कि कर्नाटक में मुस्लिमों की आबादी लगभग 13 प्रतिशत के आसपास मानी जाती है। वैसे देखा जाये तो भारत में तुष्टिकरण की राजनीति कोई नई बात नहीं है। लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को प्रचंड बहुमत मिलने के बाद दूसरे दलों को समझ आया कि तुष्टिकरण की राजनीति के दिन लद गये हैं। मोदी की देखादेखी अन्य नेता भी मंदिरों में जाने लगे, खुद को सबसे बड़ा तपस्वी बताने लगे, माथे पर चंदन का टीका लगाने लगे, जो नेता पहले सिर्फ मजारों या दरगाहों पर ही जाते थे वह अब आरती करने लगे, व्रत करने लगे और हवन पूजन करने लगे। लेकिन आप विभिन्न राज्यों की राजनीति का अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि तुष्टिकरण की राजनीति से तौबा करने का सबक सिर्फ कुछ नेताओं ने ही लिया है। कई राज्यों में आज भी तुष्टिकरण की राजनीति धड़ल्ले से जारी है। सवाल उठता है कि क्या इस तरह की राजनीति करके हमारे राजनीतिज्ञ उस शपथ का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं जिसके तहत उन्होंने कहा था कि वह बिना किसी भेदभाव के सबके साथ न्याय सुनिश्चित करेंगे? जहां तक कर्नाटक सरकार के फैसले को विपक्ष की ओर से असंवैधानिक दुस्साहस करार दिया जा रहा है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं नजर आती। विपक्ष तो यहां तक आरोप लगा रहा है कि राज्य सरकार के इस कदम का उद्देश्य प्रतिबंधित पीएफआई के ”पारितंत्र और बेरोजगार लोगों” को “वित्तीय मजबूती” प्रदान करना है। देखा जाये तो कर्नाटक सरकार शायद भूल गयी है कि उच्चतम न्यायालय सहित विभिन्न अदालतों ने बार-बार कहा है कि धर्म के आधार पर आरक्षण असंवैधानिक है और इसकी अनुमति नहीं है। यही नहीं, बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर ने भी धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने के विचार का कड़ा विरोध किया था। कर्नाटक सरकार के बजट पर नजर डालेंगे तो उसमें कई बजटीय प्रावधानों पर गंभीर सवाल उठे हैं। हम आपको बता दें कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने हाल ही में राज्य विधानसभा में 2025-26 के लिए बजट पेश किया और विभिन्न क्षेत्रों के लिए कई घोषणाएं कीं, जिसमें वक्फ संपत्तियों की मरम्मत और जीर्णोद्धार, बुनियादी ढांचे और मुस्लिम कब्रिस्तानों की सुरक्षा के लिए 150 करोड़ रुपये का आवंटन शामिल है। मुख्यमंत्री ने इस वित्तीय वर्ष में 1,000 करोड़ रुपये के परिव्यय से मुख्यमंत्री अल्पसंख्यक कॉलोनी विकास कार्यक्रम के क्रियान्वयन के लिए एक कार्य योजना का भी प्रस्ताव रखा। ऐसे में सवाल उठता है कि अल्पसंख्यक इलाका क्या है? बहरहाल, जहां तक कर्नाटक सरकार की ओर से सरकारी ठेकों में दिये गये आरक्षण की बात है तो उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पीआईएल मैन के रूप में विख्यात श्री अश्विनी उपाध्याय ने सवाल किया है कि मजहब के आधार पर विभाजन हुआ और मजहब के आधार पर आरक्षण कैसे दिया जा रहा है?